यह ब्लॉग खोजें

फ़ॉलोअर

बुधवार, 19 मई 2010

अहा !

अहा ! कितनी प्यारी–सी लड़की

जो मिली थी मुझे घूरे पर

मृत-अजन्मी

पर फिर भी मैंने

उसे उठाया और

तब आँख खोल वह मुस्काई

जिसमें थीं अनंत सम्भावनाएँ….

मैंने चूम ली उसकी

अर्ध विकसित नाक

और ली ढेर सारी मुफ़त की मिठ्ठियाँ

उसने पकड़ लिया मेरा चश्मा और

खिलखिला उठी,

लोग अब कोनों से देखकर मुझे

अहमक कहते हैं

पर कई आँखें हैं जो

पूछती हैं कि

हँसती हुई कैसी लगती थी

उनकी

बिटिया............

3 टिप्‍पणियां:

shyam gupta ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.

anoop joshi ने कहा…

bhaut sunder keep writing

बेनामी ने कहा…

bahut khub likha hai aapne..
achhi rachna ke liye badhai...
yun hi likhte rahein...
ummeed hai mere blog par bhi aapke darshan honge...
http://i555.blogspot.com/