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शनिवार, 1 मई 2010

पर

बारिश से भीगी
उस शाम को
देखा था
बुर्क़े के भीतर
कॉरसेट पहने उस
बुर्क़ानशीं को
और
जाने किस आलम में
आगे बढ़कर
छोटी-सी
बिन्दी लगा दी थी
उस शफ़्फ़ाफ़ चेहरे पर
वो स्तब्ध
देखती ही रही
और चली गई
फिर मिलने का वादा करके
(अगले दिन)
-वो ही शाम  थी
-वो ही बारिश
-वो ही बुर्क़ानशीं
पर.......??? 

5 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

per? kya hua? rahasya ukerti rachna

BrijmohanShrivastava ने कहा…

पर क्या भैया? बिन्दी नही थी क्या ? पर मे तो उलझा दिया आपने

BrijmohanShrivastava ने कहा…

पर क्या भैया? बिन्दी नही थी क्या ? पर मे तो उलझा दिया आपने

kavi surendra dube ने कहा…

wah kya suspence hai

shyam gupta ने कहा…

सिन्दूर जो था .